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सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्रीय ओबीसी की सूची में जाटों को शामिल किए जाने के निर्णय को निरस्त किया |

सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्रीय ओबीसी की सूची में जाटों को शामिल किए जाने के निर्णय को निरस्त किया |


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0000-00-00 : भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 17 मार्च 2015 को केन्द्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची में जाटों को शामिल किए जाने के केन्द्र सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया | सर्वोच्च न्यायालय ने निम्न कारणों से केंद्र सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया | पिछड़े वर्ग के राष्ट्रीय आयोग (NCBC) ने 26 फरवरी 2014 को पिछड़े वर्ग की केंद्रीय सूची में जाट समुदाय के शामिल किए जाने के केंद्र सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया क्योंकि वे सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग नहीं है | केंद्र सरकार ने केन्द्रीय ओबीसी सूची में जाटों के शामिल किए जाने हेतु 4 मार्च 2015 को एक अधिसूचना जारी की | मंडल आयोग की सिफारिश के अनुसार जाति एक प्रमुख कारक है, लेकिन यह किसी वर्ग के पिछड़ेपन को तय करने का एकमात्र कारक नहीं हो सकती | ओबीसी सूची में जाट जैसे राजनीतिक रूप से संगठित वर्ग का समावेश अन्य पिछड़े वर्गों के लिए अच्छा नहीं है | सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र का फैसला दशकों पुराने आंकड़ों पर आधारित है और आरक्षण के लिए पिछड़ेपन का आधार सामाजिक होना चाहिए, न कि आर्थिक या शैक्षणिक | सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार को ट्रांसजेंडर जैसे नए पिछड़े ग्रुप को ओबीसी के तहत लाना चाहिए | सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय ओबीसी आरक्षण रक्षा समिति द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर आया. यह समिति पिछड़ी जातियों की केंद्रीय सूची में शामिल समुदायों ने बनाई है |

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