
सर्वोच्च न्यायलय ने सेना के 2009 प्रोमोशन नीति को निरस्त करने के "एएफटी" के फैसले पर रोक लगाई गयी |
0000-00-00 : भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने "आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल (एएफटी)" के जनवरी 2009 से कर्नल रैंक के लिए सेना के पदोन्नति नीति (प्रोमोशन नीति) को खारिज करने के फैसले पर 26 मार्च 2015 को रोक लगा दी | सेना की वर्ष 2009 पदोन्नति नीति कमान्ड एग्जिट मॉडल (सीईएम) पर आधारित है | एएफटी के फैसले पर सर्वोच्च न्यायलय के तीन न्यायधीशों की पीठ न्यायधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर (पीठाध्यक्ष), न्यायधीश न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायधीश न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय ने रोक लगाई | सर्वोच्च न्यायलय ने यह निर्णय रक्षा मंत्री के सर्वोच्च न्यायलय में सीईएम नीति को तर्कसंगत बनाने की अपील करने को बाद किया | इसने इस आधार पर पदोन्नति नीति को तर्कसंगत बनाया कि सेना बतौर नियोक्ता को अपनी पदोन्नति नीतियां रखने का अधिकार है और एएफटी को नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप की दखल नहीं होनी चाहिए | सीईएम नीति पर एएफटी का फैसला कुछ इस प्रकार है : एएफटी ने 30 सैन्य अधिकारियों द्वारा 2009 पदोन्नति नीति के खिलाफ दायर उस याचिका को 2 मार्च 2015 को सही ठहराया था जिसमें पैदल सेना और तोपची सैनिकों में अन्य सेना एवं सेवाओं की तुलना में अधिक कर्नल दिए थे | न्यायाधिकरण ने सीईएम नीति को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह भेदभावपूर्ण है और इसलिए यह भारतीय संविधान की अनुच्छेद 14 (समानता का आधार) का उल्लंघन करता है | उदाहरण के लिए साल 2009 में सीईएम नीति के तहत 734 रिक्तियों में से 441 रिक्तियां पैदल सेना औऱ 186 रिक्तियां तोपची सैनिकों से भरी गईं थीं | सीईएम नीति को सेना के मुख्यालय में भेज दिया गया था और यह सेना के कार्यात्मक जरूरतों पर आधारित है जिसमें पैदल सेना और तोपची सेना दो सबसे बड़े अंग हैं | सेना में पदोन्नति नीति का अर्थ इस प्रकार है : सीईएम नीति से पहले सेना में पदोन्नति यथानुपात में होता था | यानि अगर जरूरी परीक्षा पास कर ली जाए तो लफ्टिनेंट कर्नल रैंक तक पदोन्नति समयबद्ध होती थी जबकि कर्नल और उससे उपर के रैंक के लिए परिणाम चयन बोर्ड के आधार पर होता था | वर्ष 2001 में एवी सिंह समिति (AVSC) का गठन बटालियन और ब्रिगेड कमांडरों की उम्र कम करने और सेना के अधिकारियों के करिअर की आकांक्षाओं में सुधार लाने के उद्देश्य से अधिकारी संवर्ग का पुनर्गठन करने के लिए किया गया था | कारगिल समीक्षा समिति ने बटालियन कमांडिंग अधिकारियों या कर्नलों की उम्र 37 वर्ष जबकि ब्रिगेड कमांडरों की उम्र 45 वर्ष के करीब की सिफारिश की थी |