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वर्ष 2016 में टीबी से होने वाली मौतों के मामले में भारत पहले स्थान पर : WHO

वर्ष 2016 में टीबी से होने वाली मौतों के मामले में भारत पहले स्थान पर : WHO


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2017-11-01 : हाल ही में, जारी हुई WHO की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में विश्व भर में ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) के 1.04 करोड़ नए मामले सामने आए, जिसमें 64 फीसदी के साथ सात देशों में भारत पहले नंबर पर है। भारत में इसकी वजह से वर्ष 2016 में 4.23 लाख मौतें हुई हैं। हालांकि वर्ष 2015 के मुकाबले इसमें 4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 अक्टूबर 2017 को टीबी रिपोर्ट जारी की है। विश्व भर में सबसे ज्यादा टीबी के मामले भारत में है। वर्ष 2016 में सबसे ज्यादा टीबी के मामले भारत में सामने आए इसके बाद इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस और पाकिस्तान हैं।

टीबी से मरने वाले मरीजों की संख्या एचआईवी पॉजिटिव लोगों की मृत्यु को छोड़कर वर्ष 2015 में 478,000 तथा वर्ष 2014 में 483,000 रही। डब्ल्यूएचओ की वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2017 के अनुसार भारत, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाजीरिया और साउथ अफ्रीका में इससे गंभीर रूप से प्रभावित है। भारत के अलावा चीन और रूस में वर्ष 2016 में दर्ज किए मामलों में करीब आधे 4,90,000 मामलें मल्टीड्रग-रेसिस्टैंट टीबी के है। जिन देशों में टीबी के मामले ज्यादा है उनमें मुख्य रूप से बीमारी का पता लगाने की संरचना और इलाज करने की सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में योजनानुसार वर्ष 2030 तक इसे खत्म करने में बहुत संघर्ष करना पड़ सकता है।

टीबी के रोग के बारे में :-

# टीबी का पूरा नाम है ट्यूबरकुल बेसिलाइ।

# यह एक छूत का रोग है और इसे प्रारंभिक अवस्था में ही न रोका गया तो जानलेवा साबित होता है।

# यह व्यक्ति को धीरे-धीरे मारता है।

# टीबी रोग को अन्य कई नाम से जाना जाता है, जैसे तपेदिक, क्षय रोग तथा यक्ष्मा।

# देश में हर तीन मनट में दो मरीज क्षयरोग के कारण दम तोड़ दे‍ते हैं। हर दिन चालीस हजार लोगों को इसका संक्रमण हो जाता है।

# टीबी रोग एक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है।

# इसे फेफड़ों का रोग माना जाता है, लेकिन यह फेफड़ों से रक्त प्रवाह के साथ शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकता है, जैसे हड्डियाँ, हड्डियों के जोड़, लिम्फ ग्रंथियां, आंत, त्वचा और मस्तिष्क के ऊपर की झिल्ली आदि।

# किसी रोगी के खांसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय बलगम व थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूंदें हवा में फैल जाती हैं, जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सांस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं।

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