कर्नाटक सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की सिफारिश को मंजूरी दी
2018-03-19 : हाल ही में, कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने 19 मार्च 2018 को लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग मंजूर कर ली है। इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए केंद्र के पास भेजा गया है। लिंगायत की मांग पर विचार करने के लिए नागमोहन दास समिति गठित की गई थी। राज्य की कैबिनेट ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। कर्नाटक ने इस प्रस्ताव को अंतिम स्वीकृति के लिए केंद्र के पास भेज दिया है। लिंगायत समाज को कर्नाटक के अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक में करीब 18 प्रतिशत लिंगायत समुदाय के लोग हैं।
लिंगायत कौन हैं जानिये....
बारहवीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन आरंभ किया था। उस आंदोलन के दौरान बासवन्ना ने वेदों को खारिज किया और वह मूर्ति पूजा के भी खिलाफ थे। आम मान्यता यह है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं। वहीं लिंगायतों का मानना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व बासवन्ना के उदय से भी पहले था और वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं। लिंगायत समुदाय के लोगों का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं। यह एक गेंदनुमा आकृति होती है, जिसे वे धागे से अपने शरीर से बांधते हैं। लिंगायत इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं। बासवन्ना का अनुयायी बनने के लिए जिन लोगों ने अपने धर्म को छोड़ा वे बनजिगा लिंगायत कहे गए।