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विलुप्तप्राय पैंगोलिन की सुरक्षा हेतु पांचवां विश्व पैंगोलिन दिवस मनाया गया|

विलुप्तप्राय पैंगोलिन की सुरक्षा हेतु पांचवां विश्व पैंगोलिन दिवस मनाया गया|


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2016-02-23 : हाल में, पैंगोलिन एक चींटीखोर और फोलीडोटा प्रकार का कीटभक्षी स्तनपायी हाल ही में सुर्खियों में रहा। इसकी सुरक्षा के उद्देश्य से 20 फरवरी 2016 को पांचवां विश्व पैंगोलिन दिवस मनाया गया। इस अनूठे स्तनपायी और उसकी दुर्दशा के बारे में जागरुकता पैदा करने की उम्मीद के साथ हर वर्ष फरवरी माह के तीसरे शनिवार को यह दिन मनाया जाता है।

विश्व पैंगोलिन दिवस की पूर्व संध्या पर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ– इंडिया का एक प्रभाग ट्रैफिक (टीआरएएफएफआईसी) इंडिया ने इन प्राणियों की रक्षा करने की जरूरत पर जोर दिया क्योंकि अवैध शिकार और निवास स्थान के नुकसान के कारण यह विलुप्त होने की कगार पर है। इनकी आठ प्रजातियां हैं और ये सिर्फ अफ्रीका और एशिया में पाए जाते हैं।

इनमें से दो भारत में पाए जाते हैं, इनके नाम है इंडियन पैंगोलिन (मानिस क्रासिकाउडाटा) और चाइनीज पैंगोलिन (मानिस पेंटाडाक्टायल)। भारत में यह वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की पहली अनुसूची के तहत संरक्षित पशु है। संरक्षित पशुओं से अभिप्राय वैसे पशुओं से है जिनके व्यापार की अनुमति नहीं होती है।

पैंगोलिन के बारे में :-

# पैंगोलिन शब्द मलय शब्द पुंग्गोलिन से बना है जिसका अर्थ होता है उपर चढ़ने वाला कोई जीव।

# ये प्रजातियां चींटी खाने वाली प्रजातियों से सम्बंधित है और स्तनपायी होती हैं। इनकी उपरी परत सख्त प्लेट जैसी होती है और आमतौर पर ये चींटियां और दीमक खाते हैं।

# इनके दांत नहीं होते और शिकार करने एवं खाने के लिए ये अपनी लंबी, चिपचिपी जीभ का इस्तेमाल करते हैं ।

# इनकी खाल केराटीन से बनी होती है– यह वही प्रोटीन है जिससे मनुष्यों के बाल और उंगलियों के नाखून बनते हैं।

# पैंगोलिन के भीतरी हिस्सों में परत नहीं होती और वह थोड़ी– बहुत फर के साथ ढंकी होती है।

# अफ्रीकी पैंगोलिन के विपरीत, एशियन पैंगोलिन में मोटे बाल होते हैं जो उनके चमड़ों के बीच उगे होते हैं।

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